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Thursday, September 26, 2013

जीवित्पुत्रिका व्रत

भारत को त्यौहारों का देश कहा जाता है जहां हर दिन कोई ना कोई त्यौहार होता है. त्यौहारों के ऐसे रंग शायद ही कहीं और देखने को मिलते हैं जहां हर संस्कृति और धर्म के त्यौहार बड़े ही मिलनसार रुप में मनाए जाते हैं. जीवित्पुत्रिका व्रत(Jivitputrika Vrat) भारत के ऐसे त्यौहारों में से एक है जिसमें मां अपने बेटे की लम्बी आयु के लिए व्रत रखती है साथ ही यह भी कामना करती है कि उसका बेटा सही रास्ते पर चले और अपनी जिन्दगी में सही रास्ते से अपनी मंजिल तक पहुंचे.

धार्मिक रूप में जीवित्पुत्रिका व्रत का विशेष महत्व रहा है. जीवित्पुत्रिका व्रत पुत्र की दीर्घायु के लिए निर्जला उपवास और पूजा अर्चना के साथ संपन्न होता है. इस बार जीवित्पुत्रिका व्रत 8 अक्टुबर 2012 सोमवार के दिन मनाया जाएगा. आश्विन माह की कृष्ण पक्ष कि अष्टमी को सौभाग्यवती स्त्रियों द्वारा अपनी संतान की आयु, आरोग्य तथा उनके कल्याण हेतु इस महत्वपूर्ण व्रत को किया जाता है. जीवित्पुत्रिका व्रत को जीतिया या जीउजिया, जिमूतवाहन व्रत के नाम से भी जाना जाता है. मिथिलांचल तथा उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल में इस व्रत की बहुत मान्यता है. जीवित्पुत्रिका व्रत करने से अभीष्ट की प्राप्ति होती है तथा संतान का सर्वमंगल होता है.
जीवित्पुत्रिका व्रत कथा Jivitputrika Vrat Story

जीवित्पुत्रिका या जिउतिया व्रत पुत्र प्राप्ति तथा उसके दीर्घ जीवन की कामना हेतु किया जाता है. इस पवित्र व्रत के अवसर पर कई लोककथाएँ प्रचलित हैं. इसमें से एक कथा चील और सियारिन की है. जो इस प्रकार है कि प्राचीन समय में एक जंगल में चील और सियारिन रहा करती थी और दोनों ही एक दूसरे की मित्र भी थ.  दोनो ने एक बार कुछ स्त्रियों को यह व्रत करते देखा तो स्वयं भी इस व्रत को करना चाहा.

दोनो ने एक साथ इस व्रत को किया किंतु सियारिन इस व्रत में भूख के कारण व्याकुल हो उठी तथा भूख सही न गई. इस कारण सियारिन ने चुपके से खाना ग्रहण कर लिया किंतु चील ने इस व्रत को पूरी निष्ठा के साथ किया और परिणाम यह हुआ कि सियारिन के सभी जितने भी बच्चे हुए वह कुछ ही दिन में मर जाते तथा व्रत निभानेवाली चील्ह के सभी बच्चों को दीर्घ जीवन प्राप्त हुआ.

जीमूतवाहन कथा Jimutavahana Story

जीवित्पुत्रिका-व्रत के साथ जीमूतवाहन की कथा भी जुडी है. इस कथा अनुसार गन्धर्वो के राजकुमार का नाम जीमूतवाहन था वह बहुत दयालु एवं धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे. जब इन्हें राजसिंहासन पर बैठाया गया तो इनका मन राज-पाट में नहीं लग पाया अत: राज्य का भार अपने भाइयों पर छोडकर स्वयं वन में पिता की सेवा करने चले जाते हैं. इस प्रकार जीमूतवाहन अपना समय व्यतीत करने लगते हैं. लेकिन एक दिन वन में भ्रमण करते हुए जीमूतवाहन को एक वृद्धा विलाप करते हुए दिखाई पड़ती है.

वह वृद्धा से उसके रोने का कारण पूछते हैं तो वह वृद्धा उनसे कहती है कि मैं नागवंशकी स्त्री हूं तथा मेरा एक ही पुत्र है. परंतु नागों ने पक्षिराजगरुड के समक्ष उन्हें प्रतिदिन भक्षण हेतु एक नाग सौंपने की प्रतिज्ञा ले रखी है. इस कारण वह रोज किसी न किसी नाग को उन्हें सौंप देते हैं, और आज मेरे पुत्र शंखचूड की बलि का दिन है अब मैं क्या करूं कृपा मेरी मदद करें. इस उस स्त्री की व्यथा सुनकर जीमूतवाहन उसे आश्वस्त करते हुए कहते हैं कि आप चिंता न करें मैं आपके पुत्र के प्राणों की रक्षा अवश्य करूंगा.

आज उसके बदले मैं स्वयं को प्रस्तुत करूंगा. अत: जीमूतवाहन, गरुड को बलि देने के लिए चुनी गई वध्य-शिला पर लेट जाते हैं. नियत समय पर गरुड राज आते हैं तथा लाल कपडे में ढंके जीमूतवाहन को अपने पंजों में दबोचकर पहाड के शिखर पर ले जाते हैं. चंगुल में फंसे व्यक्ति की कोई भी प्रतिक्रिया न पाकर गरुड राज आश्चर्य में पड़ जाते हैं और जीमूतवाहन से उनका परिचय पूछते हैं इस पर जीमूतवाहन उन्हें सारा किस्सा कह सुनाते हैं.


जीमूतवाहन की बहादुरी और परोपकार कि भावना से प्रभावित हो प्रसन्न होकर गरुड जी उन्हें जीवन-दान देते हैं तथा नागों की बलि न लेने का वरदान भी देते हैं. इस प्रकार जीमूतवाहन के साहस से नाग-जाति की रक्षा होती है व तभी से पुत्र की सुरक्षा एवं दीर्घ आयु हेतु इस पूजा एवं व्रत को किया जाता रहा है.

Saturday, September 21, 2013

यह है भारत देश हमारा

चमक रहा उत्तुंग हिमालय, यह नगराज हमारा ही है।
जोड़ नहीं धरती पर जिसका, वह नगराज हमारा ही है।
नदी हमारी ही है गंगा, प्लावित करती मधुरस धारा,
बहती है क्या कहीं और भी, ऎसी पावन कल-कल धारा?

सम्मानित जो सकल विश्व में, महिमा जिनकी बहुत रही है
अमर ग्रन्थ वे सभी हमारे, उपनिषदों का देश यही है।
गाएँगे यश ह्म सब इसका, यह है स्वर्णिम देश हमारा,
आगे कौन जगत में हमसे, यह है भारत देश हमारा।


यह है भारत देश हमारा, महारथी कई हुए जहाँ पर,
यह है देश मही का स्वर्णिम, ऋषियों ने तप किए जहाँ पर,
यह है देश जहाँ नारद के, गूँजे मधुमय गान कभी थे,
यह है देश जहाँ पर बनते, सर्वोत्तम सामान सभी थे।

यह है देश हमारा भारत, पूर्ण ज्ञान का शुभ्र निकेतन,
यह है देश जहाँ पर बरसी, बुद्धदेव की करुणा चेतन,
है महान, अति भव्य पुरातन, गूँजेगा यह गान हमारा,
है क्या हम-सा कोई जग में, यह है भारत देश हमारा।


विघ्नों का दल चढ़ आए तो, उन्हें देख भयभीत न होंगे,
अब न रहेंगे दलित-दीन हम, कहीं किसी से हीन न होंगे,
क्षुद्र स्वार्थ की ख़ातिर हम तो, कभी न ओछे कर्म करेंगे,
पुण्यभूमि यह भारत माता, जग की हम तो भीख न लेंगे।

मिसरी-मधु-मेवा-फल सारे, देती हमको सदा यही है,
कदली, चावल, अन्न विविध अरु क्षीर सुधामय लुटा रही है,
आर्य-भूमि उत्कर्षमयी यह, गूँजेगा यह गान हमारा,

कौन करेगा समता इसकी, महिमामय यह देश हमारा।

Friday, September 6, 2013

चल गयी (Chal Gayi)

वैसे तो एक शरीफ इंसान हूँ
आप ही की तरह श्रीमान हूँ
मगर अपनी आंख से
बहुत परेशान हूँ
अपने आप चलती है
लोग समझते हैं -- चलाई गई है
जान-बूझ कर मिलाई गई है।

एक बार बचपन में
शायद सन पचपन में
क्लास में
एक लड़की बैठी थी पास में
नाम था सुरेखा
उसने हमें देखा
और बांई चल गई
लड़की हाय-हाय
क्लास छोड़ बाहर निकल गई।

थोड़ी देर बाद
हमें है याद
प्रिंसिपल ने बुलाया
लंबा-चौड़ा लेक्चर पिलाया
हमने कहा कि जी भूल हो गई
वो बोल - ऐसा भी होता है भूल में
शर्म नहीं आती
ऐसी गंदी हरकतें करते हो,
स्कूल में?
और इससे पहले कि
हकीकत बयान करते
कि फिर चल गई
प्रिंसिपल को खल गई।
हुआ यह परिणाम
कट गया नाम
बमुश्किल तमाम
मिला एक काम।

इंटरव्यूह में, खड़े थे क्यू में
एक लड़की थी सामने अड़ी
अचानक मुड़ी
नजर उसकी हम पर पड़ी
और आंख चल गई
लड़की उछल गई
दूसरे उम्मीदवार चौंके
उस लडकी की साईड लेकर
हम पर भौंके
फिर क्या था
मार-मार जूते-चप्पल
फोड़ दिया बक्कल
सिर पर पांव रखकर भागे
लोग-बाग पीछे, हम आगे
घबराहट में घुस गये एक घर में
भयंकर पीड़ा थी सिर में
बुरी तरह हांफ रहे थे
मारे डर के कांप रहे थे
तभी पूछा उस गृहणी ने --
कौन ?
हम खड़े रहे मौन
वो बोली
बताते हो या किसी को बुलाऊँ ?
और उससे पहले
कि जबान हिलाऊँ
चल गई
वह मारे गुस्से के
जल गई
साक्षात दुर्गा-सी दीखी
बुरी तरह चीखी
बात की बात में जुड़ गये अड़ोसी-पड़ोसी
मौसा-मौसी
भतीजे-मामा
मच गया हंगामा
चड्डी बना दिया हमारा पजामा
बनियान बन गया कुर्ता
मार-मार बना दिया भुरता
हम चीखते रहे
और पीटने वाले
हमें पीटते रहे
भगवान जाने कब तक
निकालते रहे रोष
और जब हमें आया होश
तो देखा अस्पताल में पड़े थे
डाक्टर और नर्स घेरे खड़े थे
हमने अपनी एक आंख खोली
तो एक नर्स बोली
दर्द कहां है?
हम कहां कहां बताते
और इससे पहले कि कुछ कह पाते
चल गई
नर्स कुछ नहीं बोली
बाइ गॉड ! (चल गई)
मगर डाक्टर को खल गई
बोला --
इतने सीरियस हो
फिर भी ऐसी हरकत कर लेते हो
इस हाल में शर्म नहीं आती
मोहब्बत करते हुए
अस्पताल में?
उन सबके जाते ही आया वार्ड-बॉय
देने लगा अपनी राय
भाग जाएं चुपचाप
नहीं जानते आप
बढ़ गई है बात
डाक्टर को गड़ गई है
केस आपका बिगड़वा देगा
न हुआ तो मरा बताकर
जिंदा ही गड़वा देगा।
तब अंधेरे में आंखें मूंदकर
खिड़की के कूदकर भाग आए
जान बची तो लाखों पाये।

एक दिन सकारे
बाप जी हमारे
बोले हमसे --
अब क्या कहें तुमसे ?
कुछ नहीं कर सकते
तो शादी कर लो
लड़की देख लो।
मैंने देख ली है
जरा हैल्थ की कच्ची है
बच्ची है, फिर भी अच्छी है
जैसी भी, आखिर लड़की है
बड़े घर की है, फिर बेटा
यहां भी तो कड़की है।
हमने कहा --
जी अभी क्या जल्दी है?
वे बोले --
गधे हो
ढाई मन के हो गये
मगर बाप के सीने पर लदे हो
वह घर फंस गया तो संभल जाओगे।

तब एक दिन भगवान से मिल के
धड़कता दिल ले
पहुंच गए रुड़की, देखने लड़की
शायद हमारी होने वाली सास
बैठी थी हमारे पास
बोली --
यात्रा में तकलीफ तो नहीं हुई
और आंख मुई चल गई
वे समझी कि मचल गई
बोली --
लड़की तो अंदर है
मैं लड़की की मां हूँ
लड़की को बुलाऊँ
और इससे पहले कि मैं जुबान हिलाऊँ
आंख चल गई दुबारा
उन्होंने किसी का नाम ले पुकारा
झटके से खड़ी हो गईं
हम जैसे गए थे लौट आए
घर पहुंचे मुंह लटकाए
पिता जी बोले --
अब क्या फायदा
मुंह लटकाने से
आग लगे ऐसी जवानी में
डूब मरो चुल्लू भर पानी में
नहीं डूब सकते तो आंखें फोड़ लो
नहीं फोड़ सकते हमसे नाता ही तोड़ लो
जब भी कहीं जाते हो
पिटकर ही आते हो
भगवान जाने कैसे चलाते हो?

अब आप ही बताइये
क्या करूं?
कहां जाऊं?
कहां तक गुन गांऊं अपनी इस आंख के
कमबख्त जूते खिलवाएगी
लाख-दो-लाख के।
अब आप ही संभालिये
मेरा मतलब है कि कोई रास्ता निकालिये
जवान हो या वृद्धा पूरी हो या अद्धा
केवल एक लड़की
जिसकी एक आंख चलती हो
पता लगाइये
और मिल जाये तो

हमारे आदरणीय 'काका' जी को बताइये।

                  - शैल चतुर्वेदी (Shail Chaturvedi)

Wednesday, September 4, 2013

पुष्प की अभिलाषा

चाह नहीं मैं सुरबाला के
                  गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं
, प्रेमी-माला में
                  बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं
, सम्राटों के शव
                  पर हे हरि, डाला जाऊँ,
चाह नहीं
, देवों के सिर पर
                  चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ।
मुझे तोड़ लेना वनमाली!
                  उस पथ पर देना तुम फेंक,
मातृभूमि पर शीश चढ़ाने
                 
जिस पर जावें वीर अनेक

- माखनलाल चतुर्वेदी